कांशीराम का पहला चुनाव
लोकसभा चुनाव 1984 मे कांशीराम ने पहला लोकसभा चुनाव “जांजगीर मध्यप्रदेश” से लड़ा था, उनके के शब्दों में
लोकसभा चुनाव 1984 के लिए हमारे पास न पैसा था, न संगठन और न ही कोई शक्ति लेकिन, फिर भी हमने हिम्मत और हौसला करके अपने कुछ उम्मीदवार खड़े किये, छतीसगढ़ में कुछ साथियों को, जो मेरे साथ चल रहे थे उनको लड़ाने के लिए मैं उधर पहुंचा, लेकिन छत्तिसगढ़ के लोग थे वो तो पक्के कांग्रेसी थे।
श्री खुंटे (टी. आर. खुंटे) को लड़ाने के लिए मैं उधर गया था और उसके ही घर में ही मेरे ठहरने की व्यवस्था थी, उधर उसके बाप ने घर के बाहर भूख हड़ताल शुरू कर दी, यह कहते हुए कि मेरे लड़के का दिमाग ख़राब हो गया है, ये कांशीराम के चक्कर में आ गया है।
यह बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ना चाहता है, मैं कांग्रेस वालों को क्या जवाब दूंगा. इस तरह वह बेचारा भूख हड़ताल पर बैठा था और उसी के घर पर मैं ठहरा हुआ था तो, मैंने सोचा कि भई मुझे क्या करना चाहिए, जिसको लड़ाने के लिए मैं वहां गया था जब वह नहीं लड़ा तो मैंने सोचा कि मैं तो इसे लड़ाने के लिए यहाँ तैयारी करके आया हूँ, अब ये नहीं लड़ रहा है तो मुझे क्या करना चाहिए।
मैंने सोचा कि नामांकन का आज आखिरी दिन है, तो अब मुझे ही लड़ना चाहिए लेकिन, उस वक्त तो मेरे पास नामांकन के दौरान अनामत राशि भरने का पैसा नहीं था, मैंने उधर चादर बिछाई और बहुजन समाज के जिन लोगों को मैंने तैयार किया था उनसे अपील किया कि आप लोग इस चादर पर थोड़ा-थोड़ा पैसा डालें ताकि मैं 500 रूपये जमा करके अपना नामांकन कर सकूं।
जब वहाँ उन्होंने पैसा डाला और मैंने गिना तो 700 रुपया हो गया, उसमें से 500 रूपये डिपोजिट भर दिया और 200 रूपये में मैंने एक साइकिल खरीद ली क्योंकि अब मुझे प्रचार भी करना था।
इसलिए मेरे पास साईकिल भी होना जरूरी चाहिए, मैंने सोचा बाकि कर्मचारियों के पास अपनी- अपनी साइकिलें हैं, हम इकट्ठे होकर साइकिल से प्रचार करेंगे, इस तरह से साथियों हम लोगों ने प्रचार शुरू कर दिया और मुझे 32 हजार वोट मिले।
ये कहानी इसीलिए बता रहा हूँ के अगर दिल से चाहो और जनता दरी बिछाना छोरे तो किसी पार्टी या नेता को जितना या जिताना मुश्किल नहीं।