स्टेजों से धक्के मार के निकाले जाएँगे।
क़ौम को यूं ही बे-इज़्ज़त कराएँगे।
फिर हम दरी वहीं बिछाएँगे।
क़ौम का नरसंहार करवाएँगे।
वक़्फ़ की जायदाद बेच खायेंगे।
और हम दरी वहीं बिछाएँगे।
टोपी पहन के होली दिवाली मनाएँगे।
क़ौम के लिए कभी आवाज़ ना उठाएँगे।